सवाल
आचार्य भगवन !
सुनते हैं,
बहिन भाई का रिश्ता एक ।
कभी न जो रिसता अभिलेख ।।
तो भगवन् !
सिसकी भरती हुईं,
अपनीं शान्ता, स्वर्णा
यथा नाम तथा गुण अनुरूपा
जीजिंयाँ कैसे मनाई आपने ये कह करके
‘के आखरी राखी मेरी कलाई पर बाँध दो,
अब बंधवाने मैं न आ पाऊँगा लौट करके,
भगवन् ! इतना सुनते ही
दोनों बहनों ने अपने हाथ दोनों,
दोनों कानों पर रख लिए होंगे,
आपसे रूठ गईं होंगी वो दोनों,
देर तक तो बात भी नहीं की होगी,
है ना प्रभो
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
मैंने करके स्वीकार
‘बहना’
बढ़ाया ही मान दिश् चार
तुम क्यूँ होओगी नाराज
महाराज
बनने जा रहा हूँ मैं
न ‘कि महराज
और मेरी कलाई पर
हर-साल बँधा सूत्र इतर
जो चले था दिन भर
क्या नहीं चाहते हो
वो चाले जीवन भर
मैं जिन-सूत्र दीये
रखूँगा हाथ में अपने हमेशा के लिये
ऐसी उठाता हूँ सौगंध
बस इतना क्या सुना
बहने हो गई तैयार,
मेरी दीक्षा के लिये सहज सानन्द
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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