सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
आप मल्लप्पा जी से डरते थे,
प्रायः करके सभी बच्चे अपनी मम्मी से भले न डरें,
लेकिन अपने पापा के घर आने से पहले ही,
अदब से पढ़ने बैठ जायेंगे,
या फिर शोर-गुल बन्द कर देंगे
तो भगवन् !
हमारी जिज्ञासा यह हैं,
‘कि आपने अपने पिता श्री को
दीक्षा के लिये जाते समय कैसे मनाया था ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
मेरी बाँधें जातीं थीं खिल
मुझे चलाने,
‘साई-कल’ क्या जाती थी, मिल
पता तुम्हें
वो मल्लप्पा जी ने
हमारे जन्म दिन पर
दिलाई थी हमें
हमारी अपनी पसन्द की
चमचमाती नई-नई
तो आई…ने
भेजा था पिता जी से पहले,
पास आईने
थी आई भीतर से आवाज
‘के अय ! जाँबाज
क्यूँ करेंगे पिता जी मना
ओढ़ने से दिगम्बर बाना
दिला साईकल
जो बचपन से ही तो कह रहे
तू साई…कल
साई…कल
साई…कल
चल चल चल
कहते पिता जी से, ले नैन सजल
बस दीजिये आशीर्वाद
‘कि मैं अबकि होऊँ सफल
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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