सवाल
आचार्य भगवन् !
मुरारी तो कृष्ण जी को कहते हैं
है ना
लेकिन भगवन् सिंरोज के पास
एक ग्राम है जिसका नाम है मुरारिया
जहाँ पर जैनों की सिक्का चलता है
जिस किसी दिशा में कदम बढ़ा लो
जमीन पर सिर्फ और सिर्फ
एक पचरंगा झण्डा लहर खाता है
सुनते हैं
आजकल से ही नहीं पुरु-पुरखों के जमाने से,
सो भगवन् क्या ? मुरारिया नाम भी जैन संस्कृति की धरोहर है
या फिर कर्ण प्रिय
मनमोहन सिर्फ नाम भर मनोहर है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
मुर नाम का एक दैत्य था
उसके अरि यानि कि शत्रु होने से
दिश् विदिश् चर्चित नाम हरे कृष्णा हरे मुरारी
श्री किशन जी का ही है
ऐसा नहीं है
जैन वाङ्मय भी बड़ा वैभवशाली है
मुर शब्द में
‘म’-मोह का वाची है
‘र’-राग का पक्षधर है
और ‘उ’ यानि कि राग का जोड़ा
मतलब राग और द्वेष
वैसे सच्चे दुश्मन तो यही तीन हैं
राग-द्वेष और मोह
इनके जो शत्रु हैं वे देवाधिदेव ! जिनेन्द्र देव
उनका ही नाम वास्तव में मुरारी है
और देखो
घड़ा जिसे हम गगरा कहते हैं
प्यार से ग्रामवासी कहते हैं गगरिया
मुरली से कहते हैं मुरलिया
बस इसी तरह मुरारी से मुरारिया कहते हैं
बड़ा सार्थक भी है यह नाम
कि यहाँ से लोग ऐसे वैसे नहीं हैं
राग द्वेष मोह के दुश्मन हैं
शायद ही आपके लिए पता हो
इसी ग्राम से एक बड़ा ही सुन्दर सा नवयुवक
मेरे पास आया था
आत्म कल्याण की भावना ले करके
तब मैंने उससे पूछा था
क्या नाम है तुम्हारा ?
तो उसने जवाब दिया था
मेरा नाम रंजन है
तब मैंने कहा था,
रंजन तो राग का प्रतीक है
निरंजन बनो, तब कुछ काम बने
उस बच्चे ने सहर्ष अपना नाम निरंजन रख लिया था
तब से ही वह बच्चा मेरी आँखों में बस चला था
धीरे-धीरे उसकी सहजता
उसकी सरलता को देखकर मैंने
उसे दीक्षित करके नया नाम दिया था
निर्णय
नाम यह भी बड़ा सार्थक है
‘निर् मतलब नहीं
और नय
यानि कि आना जाना
अर्थात्
जिसने ऐसा निर्णय लिया है
‘के आना जाना गुम हो सके
सारी वसुधा कुटुम हो सके
वैसा सहज निराकुल सन्त
मेरी भी कुल मिला कर एक ही प्रार्थना है
‘के मेरे भगवन्त
हे भावी अरिहंत
आचार्य ज्ञान सागर जी
ये मेरे बच्चा सदहद पार कर ले
संसार सागर की
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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