सवाल
आचार्य भगवन् !
आप एक दफा लिखने से पहले,
कागज को तीन बार परिमार्जन करते हुये भी
थकते नहीं हैं,
क्या बात है, भगवन् ?
और बाद में कायोत्सर्ग भी करते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब
लाजवाब
सुनो तो,
तीन बार क्या ?
परिमार्जन अक्षीण बार करूँ
तो भी कम हैं
जीव इतने सूक्षम हैं
यन्त्रों से भी देते नहीं दिखाई
और ये नामानुरूप स्याही
पढ़ी ही नाहिं अखर ढ़ाई
हा ! कहर ढ़ाई
बिन्दु मात्र
सिन्धु भाँत मचाये तबाही
संरचना अजीबो-गरीब
इतने छोटे वे जीव
और पेन्सिल
दे इतना ‘पैन’ ‘सिल रक्खी’
‘कि क्या देगी
जाने क्यूँ,
न छूट रही
बार-बार की
कसम खाई झूठ रही
एक बार फिर करता हूँ, कायोत्सर्ग
हेत स्वर्ण अपवर्ग
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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