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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -433

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
एक बार
आप मेरे गाँव आये हुये थे
मेरे घर पर चौका लगा हुआ था
रात से ही मेरी दादी माँ ने
हिदायत दे रक्खी थी
‘कि हमें अपनी विशुद्धि बढ़ाना है
सारे गाँव में चौके लगेंगे कल,
जिस परवार के लोगों की
विशुद्धि सबसे अधिक होगी,
वहीं गुरु जी के आहार होंगे
भगवन् बरसी थी
आपकी कृपा
मेरे ही घर पर बरसी थी
आपका नौधा भक्ति पूर्वक
आहार कराने का सातिशय पुण्य
हमारे ही परिवार की झोली में
आया था
भगवन् बस इतना सा बतला
दीजिए
यह विशुद्ध क्या चीज है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब

सुनिये,
सीधा सीधा सा अर्थ है विशद…धी
नम ही नहीं
आँखों में शरम भी रखना है
कम नहीं खूब खाना है गम
देखिये
बखूब भावना भी भाना है
मर… हम बनें मरहम

सो विशुद्धि का ‘वि’ करता है
बेईमानी यानि ‘कि
मायाचारी को पतली गल्ली पकड़ा दो

विशुद्धि का ‘श’ कहता है
सूमपना
यदि हम सूम का अर्थ नहीं जानते हैं
तो सूमो पहलवान को तो
जानते ही होंगे
जो अपने शरीर के अंदर ही
जोड़ जोड़कर रखते रहते हैं
यानि ‘कि लोभ को
अँगूठा बतला दो

विशुद्धि का ‘द’ कहता है
दर्प यानि ‘कि
घमण्ड को
सिर से नीचे खिसका दो

और विशुद्धि का ‘ध’ कहता है,
धधकता हुआ अंगार जो क्रोध है
उसके कान पकड़
उसे यम का द्वार दिखला दो

मतलब
सीधा-सीधा है
क्रोध, मान, माया, लोभ
चारों की चारों कषायें
मन्द और मन्द होतीं जाएँ

ऐसी वि-मतलब विशेष
सुध-बुध रखने का नाम विशुद्धि है
वैसे कम नहीं
अखर पलटते ही
इसने आप आप ही कही
वि… सु… द… धी
धी दसवीं
यानि ‘कि
बस अब ग्यारहवीं प्रतिमा
लेना बाकी है
धन धन
जिन्होंने विशुद्धि बढ़ा
भव मानव लाज राखी है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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