सवाल
आचार्य भगवन् !
जाने पुण्य है पाप हमारा
आपके सिवाय हमें
कुछ भी तो नहीं मिला
भव मानव मिलकरके भी
हीन संहनन है
तीर्थकर प्रभु का सद्भाव नहीं है
कालकलि काल है,
जिसमें ‘जनम होवे मेरा’
ऐसा लक्ष्मण जी ने कहा था
अपनी नव विवाहिताओं से
यदि मैं भैय्या श्री राम जी के
राजा बनने के बाद
तुम्हें लेने न आऊँ
तो पंचम काल में जन्म लेऊँ
सो
यह तो एक किस्म का उलाहना है
जो हमें इस बार हाथ लगा
भगवन् कब होगा कल्याण हमारा
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
चुल्लू भर पानी को देख करके
ना नुकर मत कीजिये
आइये अपना अंगूठा दीजिये
सुनते हैं,
काग स्नान भी होता है
सच बड़ा अनोखा है
कौआ कब रोता है
अपना सर पानी में डुबोकर
वाह भाई वाह
जाने किस मदरसे मिली पनाह
कुछ इस कदर से झटकता है
‘के रोम रोम के मुँह से
हर-हर गंगे निकल आता है
देखो
बढ़ाने से कब बढ़ता है
सुना नहीं
धोबी कहने के गधे पर कब चढ़ता है
यदि नहीं सुन रहा हो
आपका अपना कद
तो बढ़ा लीजिये अपनी सोच का स्तर
सुनते हैं
सुनता उसे खूब आता है
दूसरी शाला की
दूसरी कक्षा में जो पढ़ता है
खुदबखुद शब्द ही कह रहा
कल्याण
कलि यान
क्या कुछ नहीं मिला है
सब कुछ तो मिला है
बस
कमी हमारी अपनी तरफ से ही है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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