सवाल
आचार्य भगवन् !
संघों में आजकल गरमी में ही नहीं,
जिस किसी मौसम में खूब चलते हैं
आहारों में रसों पे रस
एकाध ग्रास नहीं,
ऐसा वैसा गिलास नहीं
गिलास पटियाला भर भर के
रस सन्तरे का
रस पाइनएप्पल का
रस अनार का
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
सुनिये तो कान लगा करके जर्रा
दीवालों से तो
खूब सटा के रखते हैं हम कान अपने
कहते हैं सन्तरे,
हम सन्तों के हैं
सन्तों के लिये ही लेते हैं अवतार
‘कि हमें स्वीकार
मेरे भगवन् दो हमें भी अब तार
कुछ कुछ यही कर रहा
पाइनएप्पल
‘के जिनके पास ‘पाई’ भी नहीं है
मैं उसका हूँ
‘पाई’ रखने वाले तो
एप्पल के मोबाइल पर
छिड़कते हैं अपनी जान
सन्तों का अंजुली-पुट पाकर
उठती कॉलर मेरी
जागता है मेरा स्वाभिमान
और सुनिये
पौरुष जब तलक सुप्त है
तब तक नर भी नार ही है
सो सार्थक नाम
शब्द अनार
सन्तों के सिवाय
और
किसका सेवक हो सकता है
और हाँ
बचपन से ही जो संस्कार
दृढ़ रहते हैं हमारे
पाठशाला की प्रार्थना जो है
“जय पारस जय पारस”
सो अभी अभी सन्त बढ़ा रहे पग
‘पा’ के बाद रुक से चले हैं
भगवान् से एक प्रार्थना मेरी भी है
जल्दी ही एक और पग बढ़ा करके
सार्थक नाम ‘सा’ मतलब
साधु करें
पार… के बाद ‘स’ पढ़ करके
‘के पार साधूँ
जय पार साधू
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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