सवाल
आचार्य भगवन् !
माँ सबसे हटके क्यों होती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
दादा के सपने में
खेत खलियान बाड़ी
दादी के सपने में
किचिन-मकान-क्यारी
पापा के सपने में
पैसा-दुकान-दारी
‘दे दिखाई’
मगर
माँ के सपने में
बेजोड़ मुस्कान, जा सके वारी
जिसपे दुनिया सारी
यानि ‘कि उसका लाड़…का ‘रे ! भाई
बेजोड़ दुआएँ दे देती है
बदले में तिनके तोड़ बलाएँ ले लेती है
सौदेबाज़ी आती कब है
धरती पे माँ सूरत रब है
दिन रात ‘फ्री ऑफ कॉस्ट’ फिरी
बन फिरकनी
माँ जाने किस मिट्टी से बनी
बच्चों को जिमाती है
माँ
उतना भोजन नजर उतारने ले आती है
बीज बड़े-बड़े कहीं बच्चा जाये न निगल
चीकू खिला रही माँ
अपनी अंगुली अंगूठे से मसल-मसल
बच्चे के मुख में फिर रखती है
बैर हो,
या हो अंगूर
माँ पहले स्वयम् चखती है
तो क्या झूठे रही खिला
नहीं ‘रे अनूठे रही खिला
दाँत तोड़ कड़े बीजों पर
अपना नाम लिख लेती है
माँ रख देती है
बच्चे के हाथ पर माफिक मलाई जाम
कच्चा हो
हरा हो
माँ लेती है वो
‘बच्चा’
देती है जो पपीता पक्का हो
मनहरा हो
गन्ना अपने दाँतों से छीलकर
गड़ेरी पर नहीं रखता यदि कोई नज़र
तो एक वो माँ है
सिर्फ और सिर्फ
छिलके चूसने में ही जिसे आता मजा है
माँ ने पलकों से अपनी आँखें ढ़क लीं
न देखा
बेटे ने
हाथों से अपने
जेबों में
कितनी मटर फल्लिंयाँ रख लीं
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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