सवाल
आचार्य भगवन् !
महात्मा में ढ़ेढ़ माँ,
परमात्मा में दो माँ
ऐसा है क्या माँ में
सभी ने आगे-पीछे माँ को क्यों लगा रक्खा है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
भर पेट
भर भर प्लेट
बच्चों को जिमा के
निवाला
हलक से नीचे उतरता माँ के
सच
भात खिलाती
अमाँ अपने हाथ खिलाती
माँ अपना पेट काट खिलाती
न आसाँ
जाके अब बन सका मैं
पहले माँ…था
पृथ्वी तो बस
लूट रही जश
माँ सूरत क्षमा
अपलक नजर
नज़र टिका
तिनके तोड़ती माँ
‘के छू सके बच्चा आसमां
उठा के…..
उसनींदे बच्चे के मुँह से
दूध का गिलास
शायद ही हो
न किसी माँ ने
‘कि हो लगाया
सभी को होगा याद
कुछ कुछ याद आया
यूँ ही न बच्चे का चेहरा,
दे आता है शिकस्त चन्द्रमा को
तार तार करना पड़ता है,
अपना आँचल माँ को
बच्चे को लगी प्यास हो
और पानी न आस पास हो
तो झील सी माँ की आँखों में
झरने फूट ही पड़ते हैं
हाँ… हाँ…
आप-बीति जो है
सब समझते हैं
भले पसीना आँचल भिंजो रहा हो
कब सांस भर रहा है
‘हाथ माँ का’
पंखा झल रहा है
‘के उसका लाड़…का सो रहा है
सुबह सुबह ठण्डी में
उठ अपनी रजाई
ले ‘किस’ माँ ने
अपने बच्चे को न होगी उड़ाई
तब तक माँ ने था जारी रक्खा फूँकना
जब तक न हो गया था
रफा-दफा जख्म का दूखना
माँ से उठाने रखने में
थी न की भूल, भूल से
थे जब हम फूल से
बस सोना हमें
रख कर
माँ की गोद में
‘सर’
दरद…
नदारद
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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