सवाल
आचार्य भगवन् !
मोर के पंख की ही पीछि क्यों रखते हैं आप ?
क्या कोमल, सुकुमाल रहती है इसलिये,
या वजनी नहीं रहती है इसलिए,
क्या बड़ी सुन्दर,
मनहर बड़ी नयनहर रहती इसलिये
क्या कारण है,
कृपया कहिये स्वामिन्
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखो,
बक ‘पर’
पिक ‘पर’
भ्रमर ‘पर’
कबूतर ‘पर’
गौरैय्या ‘पर’
ततैय्या ‘पर’
सभी पराये
घूम आये
जग दोई
न कोई अपना
‘मोर’ पर
खुशी खुशी कहता
मोर पर ‘पर’
बस जब इतना वात्सल्य मिला
तब एक सुर से
सभी सन्तों के मुख से निकला
‘मोर’ मोर पर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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