सवाल
आचार्य भगवन् !
‘एक गीत’
दे धका क्यूँ निकालते घर से
पढ़ी गो दूसरे ही मदरसे
दो गज आवास लेती है
लेने के नाम पे
पानी और घास लेती है
और छप्पर फाड़ के देती है
लकीर बढ़ाती अपनी
हैं कहाँ जुबाँ कतरनी
जग जाहिर
जग खातिर
बनी फिरती है फिरकनी
बूढ़ी हो जाने पर
अपनी माँ के ऊपर
बतलाओ ऐ !
बरसाओगे
क्या यूँही कहर
कैसे लोग हैं
जय गोपाल बोलते तो हैं
पर ऊपर ऊपर
खून के आँसू-से पीतीं हैं गाय आजकल
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच
दूवा खाती, दूध पिलाती ।
कभी किसी को दिल न दुखाती ।।
घर से उसे निकाला जो ।
कैसे भक्त गुपाला हो ।।
उड़ा गुलाल, लगा के रँग ।
खेले फाग गुपाला सँग
हाय ! जिन्दगी कटी पतंग ।
ला कसाई-घर डाला जो ।
कैसे भक्त गुपाला हो ।।
हो वर्धन, प्राणी भोला ।
पर्वत गो’वर्धन बोला ।।
विरथा भौ-नर्तन चोला ।
बोझ समझ गो पाला जो ।
कैसे भक्त गुपाला हो ।।
मुक्त हस्त गौरव देती ।
पंच गव्य जैविक खेती ।।
तिनके तोड़ बला लेती ।
अन्त मरण न सॅंभाला जो ।
कैसे भक्त गुपाला हो ।।
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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