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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -383

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
गुरु पूर्णिमा का आप हटके ही अर्थ लेते हैं
‘के गुरु पूर्ण, माँ
है जिसने हमें जनम दिया
दर दर न भटक कर उसी की सेवा करो
चार धाम से बढ़ के है माँ
अद्भुत सोच है आपकी
मातृ शक्ति… मात्र शक्ति
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
रिश्ता-ए-माँ होता ही है कुछ खास
और रिश्तों से है होता जो बड़ा,
एक दो नहीं, पूरे पूरे नौ मास

साथ मे खाना खा रही हो माँ की छुटकी,
तो चावल माँ चुटकी में भरके
एक एक चुगती है
‘कि उसकी छुटकी
चुटकी में चट कर जाये,
और बचा-खुचा लिखा जाये मेरे नाम
मॉं प्रणाम

चिड़िया तो कर जाती कब का गप्प
चोंच में भारी बोझ लेकर
चली आ रही कोई मॉं होगी
काकी तो लगाती रहती जिस किसी से गप्प
सोच में भारी बोझ लेकर
वो भी पराया
न ‘कि हमसाया
घुली जा रही वह कोई मॉं होगी

इन्द्र बड़ा
प्रति इन्द्र छोटा
सो…
मॉं बड़ी
प्रतिमा छोटी

सुबह पिनाई नव चूड़िंयाँ
बची साँझ कलाई नौ चूड़िंयाँ
गईं सिखा
दो पैसों की जो चूड़िंयॉं बनके सखा
‘कि टूट-फूट का ही नाम दूसरा दुनिया
अय ! मेरी गुड़िया
दो सौ रुपये दिन की ट्यूटर न पाती वो सिखा
दूरदृष्टि रखने वाली माँ
सच करिश्मा

घोंसला कुछ कुछ
गुसलखाने से मिलता जुलता
कहती कहती छू…जा
नटखट चूजा अदम्य खिलाती है
चिड़िया मॉं बस गम खाती है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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