सवाल
आचार्य भगवन् !
मन दूसरों की लकीर मिटा करके
लकी बनना चाहता है
और लकीर में है भी लकी शब्द
रबर का ‘र’ भी
मिटाने के लिये ही पूर्वजों ने रक्खा होगा
ऐसा हवाला भी देता है
कैसे समझाऊँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिए,
लकीर में लकी बनने के लिए,
‘र’ रबर का नहीं है
रहम का ‘र’ है
दूसरा ‘र’ न चुन लिया जाये
इसलिये नामकरण ही ऐसा
बड़ी समझदारी से किया गया है
के ‘र’ सिर्फ और सिर्फ हम है
और हम महर जो चाहते
सो,
म…ह…र
अक्षर पलटते ही जादू होता
शब्द लेता जनम
रहम
हाँ.. हाँ रहम लो अपना
अपना ‘लक’ लो बना
रबर आहिस्ता-आहिस्ता
रब को प्यारी हो जाती है
वह लगे खींचने मेंं
‘लकीर’
और हम बेवजह लगे खरोंचने में
झट-पट
देख खटपट
अभिलेख फट जाती पाती है
हाईकू
बने बढ़ाओ
‘आप लकीर’
औरों की न मिटाओ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!