सवाल
आचार्य भगवन् !
जब पंचम काल में मानव
मिथ्यात्व के साथ ही धरा पर धरा जाता है
और सम्यक् दृष्टिपना परसेन्ट में सही,
अंगुली का नाम अनामिका रखने तत्पर है ।
जिसकी सीमा में
आप जैसे त्यागी तपस्विंयों का आना हो सकेगा
फिर हम लोग
यम, नियम, संयम का पालन कर, क्यों कर
‘रात भर पीसो पारे में उठाओ’
वाली कहावत क्यों चरितार्थ करें
चूँकि ग्रन्थों ही नहीं,
निर्ग्रन्थों का भी यही कहना है,
‘कि अज्ञानी के
व्रत तप संसार के ही कारण हैं ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
अज्ञानी के हैं व्रत, तप, यम, नियम, संयम
संसार के ही कारण,
आज्ञा…नी के नहीं
और की और जाने,
लेकिन आज्ञा नाम का सम्यक्त्व तो हमारे ही
ऊपर निर्भर करता है
सो आ… ज्ञानी के आसपास तो दिखिये
फिर देखिये, खरबूजे को रंग बदलने में समय ही
कितना लगता है
और देखिये,
सुनते हैं,
हम भारतीय स्टेट बैंक में अरबों, खरबों क्या
चक्रवर्ती के वैभव को भी रख दें,
तो भी वह कहती हैं
‘कि दिवालिया होने पर मैं दावेदार के लिए दूँगी
सिर्फ एक लाख रुपये
सो, इतना सुनते ही लोगों के द्वारा
निकाल लिये जाने चाहिये थे
अपने नेक लाख रुपये
चूँकि कौन देख सकता है
राख होते अपने रुपये
पर नहीं,
जानते हैं सभी
‘के दिखा रही महतारी लूघरा
बाहर से,
भीतर झॉंक करके देखो जरा
कह रही है तू मेरा…
यह बस इसी प्रकार से ही है
‘के हम धरती पर धरे रहें,
हवा में न उड़ने लगें
चूँकि उलट पुलट का तो काम ही है हवा का
जल्दी ही
उलट अक्षर
ह…वा
वा…ह कहलवा लेते हैं
और ऽपर सेट की खुशबू तो जाती कोने कोने
आ रख परिणाम सलोने
बढ़ाते कदम आज्ञा सम्यक्त्वी होने
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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