सवाल
आचार्य भगवन् !
निराकुल चौबीसी में ‘न’ से नामकरण
किया है आपने
सभी मुनिराजों का,
अद्भुत है,
पर बहुत सोचने पड़े होंगे नाम एक से
एक से नाम आपने क्यों रक्खे हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
न और किसी की आज
सिवा ‘एक’ निस्वार्थ क्रिया
सिवा ‘एक’ निर्दोष चर्या
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निर्लोभ वृत्ति
सिवा ‘एक’ नीरोग दृष्टि
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निर्मोह राह
सिवा ‘एक’ निष्पक्ष छाह
न किसी और का आज
सिवा ‘एक’ निस्पृह नेह
सिवा ‘एक’ निश्चल ध्येय
न किसी और का आज
सिवा ‘एक’ निष्कंप प्रण
सिवा ‘एक’ निस्पन्द मन
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निरामय धी
सिता ‘एक’ निरापद श्री
न किसी और का आज
सिवा ‘एक’ निराकुल ध्याँ
सिवा ‘एक’ निरुपम ज्ञाँ
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निष्काम भक्ति
सिवा ‘एक’ निरीह सिद्धि
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निस्सीम गति
सिवा ‘एक’ निर्भीक मति
न किसी और के आज
सिवा ‘एक’ नीराग भाव
सिवा ‘एक’ नीरज पाँव
न किसी और की आज
सिवा ‘एक’ निकलंक जै
सिवा ‘एक’ निर्मद विनै
न किसी और का आज
सिवा ‘एक’ निसर्गा-नन्द
सिवा ‘एक’ निसंग पन्थ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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