सवाल
आचार्य भगवन् !
सन्मृत्य, समाधि, सल्लेखना में
क्या करना होता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
खेल ना ‘री
चलती रेलगाड़ी से उतरना
अब चलना न चलेगा
पड़ेगा दौड़ना
वो भी न चलेगा आहिस्ते-आहिस्ते
और न ही हाँपते-हाँपते
ताल-मेल
चाल-रेल से पड़ेगा जोड़ना
और सुनो
पल-पलक नहीं
देर तलक
अब सुजान…
इतना भी नहीं आसान
पाना आत्म झलक
वैसे है आसान बड़ा
बस आशा न बढ़ा
आ शान बढ़ा
जो घबड़ा जायेगा
अग्नि परीक्षा से
वो घड़ा न बन पायेगा
माटी-माधौ
साधो, बनती कोशिश
मरण-जागते-जागते
रहे स्मरण
भागते भागते हिरण
न पा पाया कस्तूरी
भले नाप आया, एक लम्बी दूरी
वैसे ज्यादा दूर न आतमा
खड़े होना अपने पंजों पर
और हाथ लगना आसमां
हाय ! मरण किया
रो वारिश
ओ ! बार इस
‘के जाय स्मरण किया
करना कुछ ऐसा
न खरीद सके जिले पैसा,
दो और दो चार का जहाँ
न लगे गणित
दे जाये जो अगणित
बग़ैर मॉंगे
बढ़ा ‘आ…चरण’ आगे
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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