सवाल
आचार्य भगवन् !
पत्थर-मकराना कहता है
‘कि, ‘मैं इक राणा’ मैं पत्थरों का राजा हूँ
और पीछे रहने वाला कब है, पत्थर संगमरमर
कहता है, मेरा संगम अमर हैं,
तो भगवन् ! जब आपके लिये जिनालयों को अमरता प्रदान करनी है,
हजारों वर्षो तक ज्यों के त्यों बने रहें जिन-मन्दिर,
ऐसी आपकी अंतरंग की भावना है,
तब आपने एक साधारण सें लाल-पत्थर के लिये ही मन्दिरों के निर्माण के लिये क्यों चुना है स्वामिन् !
क्या इसके बारे में कोई विशेष,
राज की बात को सुना है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अरे भाई !
यदि मैं
पीला चुनता
या पत्थर नीला चुनता
हरा चुनता
या पत्थर सुनहरा चुनता
दूधिया चुनता
या पत्थर साँवलिया चुनता
तो पत्थर, पत्थर ही रहता
ज्यादा समय तक दुनिया में स्थिर न रहता
मैंने पत्थर ‘लाल’ चुना है
जो अपने पप्पा से,
ज्यादा न सही
पर कम तो न जियेगा
यूँ जैनी परचम लहरेगा
हरष-हरष
बरस-बरस
कराता हुआ सम्यक्-दरश
बस और बस
एक छोटी सी मेरी यही सोच बस
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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