सवाल
आचार्य भगवन् !
भाग के शादी करना, कहाँ तक जायज है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
जो हाँपना हो
तो करो शादी भाग के
वैसे मेरी मानो तो करो शादी जाग के
सपनों की उम्र ही कितनी होती है
दूरिंयाँ दर-कदम नहीं,
दर-छलाँग बढ़ें
जो भाग कर हम शादी करें
नशा भांग उतरने के बाद
‘लगता हाथ’
वही भाग के शादी करने के बाद
भाग करके की गई शादी
पीछे कड़वी
मीठे शहद के भाँति
न हुई सगाई,
न बजी बधाई
ड़ोली न उठी, न हुई विदाई
और फबक-फबक कर रुला दिया
मम्मी पापा के बेशुमार प्यार दुलार का,
बड़ा अच्छा सिला दिया
ये कैसा विवाह
भाग के चोरी छुपके
तो होता गुनाह
लाडो !
बीज ने मन-पसन्द जमीन पाने की जिद की
और हवा की संगति करके,
दरार के रास्ते कर लिया सपना अपना
गरजे
बादल बरसे
बीज पौधा बन चला,
पर ये क्या,
वही साथी हवा
अब उत्पाती बन आती है
छूना था आसमान
ये ‘गोल’ ओर छोर क्षितिज की सैर कराती है
अय ! बागबान रह रह के तेरी बहुत याद आती है
अब मेरा कोई करता न भरोसा
क्यूँ आखिर क्यूँ जीजी
तुमने भाग करके शादी करने का सोचा
भुलाकर
अपनी छोटी बहन को रुलाकर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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