सवाल
आचार्य भगवन् !
रास्ते से चलता हूँ,
फिर भी गाड़ी ठोक ही देता है,
कोई न कोई आकर के,
बगैर बनाये बैरी बनते जा रहे हैं
क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
लाखों में एक होता है
मित्र, यार, दोस्त पाने दूसरा
लाखों को करना पड़ता है पार,
और खार यानि ‘कि काँटे
वो तो लग कतार,
कदम कदम पर
यदि लेने न दे रहे हों दम,
तो किसी प्रकार का अचरज न कर
देखो, रो…ड से ड…रो ही
फुटपाथ भी तीन फुट का अपना नहीं है
हाँ… हाँ…
कहने को भी नहीं है
स्वयं खोलता है राज शब्द फुट…पाथ
फुट भर ही,
पाथ यानि ‘कि रास्ता
हमारे लिये हैं
और कंधे से कंधे घसिट रहे
ऐसे चल रहे हम
भाई गली साकरी
‘री परिणती
चल अकेली, राख नाक भी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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