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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -329

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !

‘एक गीत’
रह-रह के रुलाये
तू मुझे, याद पे याद आये
वो मुस्कान तेरी
थी जो जान मेरी
खुली-खिली कलिंयों को
देखते ही तितलिंयों को
तू मुझे दे सिहरन जाये
रह-रह के रुलाये

तू मुझे, याद पे याद आये
साँसों की खुशबू
तेरी वो गुफ्तगू
चहकती चिड़िंयों को
देखते ही…
देखते ही
महकती बगिंयों को
तू मुझे बेसुध सा कर जाये
रह रह के रुलाये
तू मुझे याद पे याद आये
रह रह के रुलाये
तू मुझे दे सिहरन जाये

रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ

जोड़ी माया खो जाना है
काया माटी हो जाना है

देखते ही देखते अपने
देखते ही देखते सपने
कट जाना डोर पतंग
फट जाना जोड़ मृदंग
देखते ही देखते अपने
देखते ही देखते सपने
जोड़ी माया खो जाना है
काया माटी हो जाना है

पखेरू पिंजरे उड़ जाना
फूल मुरझा के झड़ जाना
देखते ही देखते अपने
देखते ही देखते सपने
जोड़ी माया खो जाना है
काया माटी हो जाना है

टूट जाना तारे गगना
फूट जाना गिर आईना
देखते ही देखते अपने
देखते ही देखते सपने
जोड़ी माया खो जाना है
काया माटी हो जाना है

सच…

हवा का झोखा
बचना दीवा धोखा
बचना फुलवा धोखा
रहते-रहते मौका

न किसी का हुआ सगा है
दिन पे दिन जबाँ हुआ दगा है
रहते-रहते मौका
बचना दीवा धोखा
बचना फुलवा धोखा
हवा का झोखा

आता कहाँ से, है अता न पता
बस नाम के, है अमर-देवता
रहते-रहते मौका
बचना दीवा धोखा
बचना फुलवा धोखा
हवा का झोखा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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