सवाल
आचार्य भगवन् !
‘एक गीत’
जीवन लकीर ले गये, हाथों की मेरी
तुम गये क्या गये
नींद ले गये, रातों की मेरी
सुख दुख के मेरे, अकेले साथिया
इक तुम ही तो थे
अंधेरे में टिमटिमाते दिया
उम्मीद ले गये, उड़ानों की मेरी
तुम गये क्या गये
नींद ले गये, रातों की मेरी
निवाला तोड़ते थे तुम
हलक नीचे करते थे हम
एहसान तेरे मुझ पे घनेरे साथिया
सुख दुख के मेरे, अकेले साथिया
इक तुम ही तो थे
अंधेरे में टिमटिमाते दिया
उम्मीद ले गये, उड़ानों की मेरी
तुम गये क्या गये
नींद ले गये, रातों की मेरी
नैन होते थे तेरे
आँसू होते थे मेरे
ऐहसान तेरे मुझपे घनेरे साथिया
सुख दुख के मेरे, अकेले साथिया
इक तुम ही तो थे
अंधेरे में टिमटिमाते दिया
उम्मीद ले गये, उड़ानों की मेरी
तुम गये तो गये
नींद ले गये, रातों की मेरी
रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ
कब मरता मैं
न जनमता मैं
मैं अजन्मा
मेरा मरण कहाँ
अक्षर हूँ
मैं अमर हूँ
कब मरता मैं
न जनमता मैं
मैं धवल हूँ
जल भिन्न कँवल हूँ
मैं अजन्मा
मेरा मरण कहाँ
अक्षर हूँ
मैं अमर हूँ
कब मरता मैं
न जनमता मैं
सच…
मौत से किसकी यारी है
आज तेरी, तो कल मेरी बारी है
छोड़ कर रत्न और निधिंयाँ
मूँद चक्री ने, न खोलीं अँखिंयाँ
रह गई रोतीं सखिंयाँ
मूँद चक्री ने, न खोली अँखिंयाँ
इक इसी से बस दुनिया हारी है
मौत से किसकी यारी है
आज तेरी, तो कल मेरी है
आसमान से टूट पड़ते तारे
टोने टोटके झूठ निकलते सारे
क्या लगा धका, या के धक्का
काया से लहू के छूट पड़ते फव्वारे
तलक अब इसकी मनमानी जारी है
मौत से किसकी यारी है
आज तेरी तो कल मेरी बारी है
इक इसी से बस दुनिया हारी है
तलक अब इसकी मनमानी जारी है
मौत से किसकी यारी है
आज तेरी तो कल मेरी बारी है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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