सवाल
आचार्य भगवन् !
‘एक गीत’
तुझको खो कर
अब मेरे पास, बचा ही क्या
पहचान था
तू मेरी जान था
खाई ठोकर
तुझको खोकर
अब मेरे पास बचा ही क्या
इन आँसुअन के सिवा
बहाता रहता जिन्हें
याद कर…करके तुम्हें
मैं फूल कागज का
तू खुशबू था
जिंदा हूँ भी नहीं मैं जिंदा होकर
तुझको खोकर
अब मेरे पास बचा ही क्या
वन-रुदन के सिवा
सूनेपन के सिवा
अब मेरे पास बचा ही क्या
इन आँसुअन के सिवा
बहाता रहता जिन्हें
याद कर… करके तुम्हें
मैं फूल कागज का
तू खुशबू था
जिंदा हूँ भी नहीं मैं जिंदा होकर
तुझको खोकर
रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ
देश बदलता है
बस भेष बदलता है
छूती होगी मौत किसी को
ले जाती होगी साथ किसी को
ये आत्मा तो हर बारी, बच निकलता है
देश बदलता है
बस भेष बदलता है
क्यूँ मौत से लड़ना
क्यूँ मौत से डरना
है आत्मा तो अजर अमर
नामुमकिन उसका मरना
जाऊँ मैं इसपे बलिहारी
ये आत्मा तो हर बारी, बच निकलता है
देश बदलता है
बस भेष बदलता है
कोई चीज ही मौत ना
छलावा
अलावा
कोई चीज ही मौत ना
क्यूँ मौत से लड़ना
जाऊँ मैं इसपे बलिहारी
ये आत्मा तो हर बारी, बच निकलता है
देश बदलता है
बस भेष बदलता है
सच…
एक न सुनती बात
ले चलती अपने साथ
बेगुनाह पीला पात
लीला…. जीवन लीला वात
ऐसा अंधा न्याय यहाँ
गौरख धंधा हाय ! यहाँ
दूर देखना साँझ साथी !
कली ले न मुस्कान पाती
मौत रहती ही ताँक में
बहाने किसी भी आके धर दबाती
दिन देखती न देखती रात
ले चलती अपने साथ
एक न सुनती बात
ले चलती अपने साथ
बेगुनाह पीला पात
लीला…. जीवन लीला वात
ऐसा अंधा न्याय यहाँ
गौरख धंधा हाय ! यहाँ
तेल नया, नई बाती
ओट, चारों ओर थाती
मौत रहती ही ताँक में
बहाने किसी भी आके धर दबाती
दिन देखती न देखती रात
ले चलती अपने साथ
एक न सुनती बात
ले चलती अपने साथ
बेगुनाह पीला पात
लीला…. जीवन लीला वात
ऐसा अंधा न्याय यहाँ
गौरख धंधा हाय ! यहाँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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