सवाल
आचार्य भगवन् !
स्नेह के ढ़ाई आखर पढ़ने कठिन हैं क्या
‘बाल’ बुढ़ा जाते
पर सीख न पाते
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कभी पैर की अंगुली एक,
घायल हो जाती है
तो बाजू वाली अंगुली भी, रो जाती है
वैसे घायल अंगुली से कम सूजी है,
पर, खूब सूजी है
और बाजू वाली अंगुली भी, गम में खो जाती है
वैसे खूब सूजी अंगुली से
कम सूजी है
पर, बखूब सूजी है
जब इनमें इतना प्रेम है
सुबह-सबेरे, सांझ-सकारे आकर पूछते रहते हैं
क्यूँ क्या कुशल-क्षेम है
फिर हम तो मानौ
भाई मानो तो
बड़े सरल हैं
ढ़ाई आखर
बस पढ़ो,
नाक पर रक्खा बोझ हटाकर,
चलो, उठो, बढ़ो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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