सवाल
आचार्य भगवन् !
नेकी का रास्ता आप खुद नापते हैं
दीन-दुखियों के आँसू अपने हाथों से पोंछते हैं
और अखीर में श्रेय परम पूज्य श्री ज्ञान सागर जी को दे देते हैं,
‘कि तू ही सब कराने वाला,
मैं था ही क्या ? रास्ते के पत्थर सिवा ?
ऐसा क्यूँ स्वामिन्
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच,
मैं रास्ते का पत्थर ही तो था
जिसे गुरु जी गढ़ते गये
गढ़ते गये
गुण दे गये
गण दे गये
और एक दिन स्वयम् गुरुजी ने था बताया
‘मैं’ मय
बस अक्षर थोड़ी दूर दूर पढ़ने हैं
म…य
मैं-मैं करती बकरी को खींच खाल
पोल वाली ढ़ोल पर मढ़
देते मार
मिला-कर-ताल
और तू ही, तू ही, तू ही कहती तुरही
सुर’भी रही निकाल
अधर कोमल स्पर्श पा
इतर गुरु कृपा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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