सवाल
आचार्य भगवन् !
आप कहते हैं भीतर अपना…
बाहर सपना.
अपनी नाक के आगे
अपना कुछ भी नहीं,
पर विश्वास कैसे जमायें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
जा खोल के भीतर झाँकें
आ खोल के भीतर-आँँखें
और अब जो दिख रहा
वो अपना है
और सब जो दिख रहा
वो सपना है
आशा… दिलाये दिलासा
बस मृग-मरीचिका सा
मन-गणन्त है, कोरी-कल्पना है
आते आते
करीब आते-आते हो जाता फना है
मन गणन्त है, कोरी-कल्पना है
हाँपें और भागें, भागी ‘रे मंजिल आती
धीमे धीमे भागें
धीमी पै मंजिल आती
यह गणित वहाँ नाकाम
जहाँ छोर क्षितिज मुकाम
आशा… दिलाये दिलासा
बस मृग-मरीचिका सा
मन-गणन्त है, कोरी-कल्पना है
आते आते
करीब आते-आते हो जाता फना है
मन गणन्त है, कोरी-कल्पना है
सुबह से शाम चलें, तो लगें ठिकाने पे
सुबह व शाम चलें, क्यों लगे ठिकाने पे
यह गणित वहाँ नाकाम
जब कोल्हू नन्दी राम
आशा… दिलाये दिलासा
बस मृग-मरीचिका सा
मन-गणन्त है, कोरी-कल्पना है
आते आते
करीब आते-आते हो जाता फना है
मन गणन्त है, कोरी-कल्पना है
सच
भीतर अपना…
बाहर सपना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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