सवाल
आचार्य भगवन् !
जिन भागचन्द्र जी सोनी ने आपकी
अल्प-वय में दैगम्बरी दीक्षा होते देख,
विपक्ष की कमान सँभाली थी,
था कहा
‘के “दिगम्बर मुद्रा कोई बच्चों का खेल नहीं है, अच्छे-अच्छे सुभट,
अपना एक कदम अभी बढ़ा भी न पाये
और मैदान छोड़ करके,
कीर्ति रूपी अपनी स्त्री का,
मरा हुआ मुँह देखते हुये भी, न लजाये
कुछ समय और कसौटी पर कँस लीजिये,
काई पर पैर संभलते-संभलते भी
फिसल जाता है अय ! मेरे भगवन्”,
अय ! मेरे भगवन्, छोटे बाबा !
बस मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ,
‘के आपने प्रथम पड़गाहन का सौभाग्य,
उन्हीं को दे दिया
क्या कारण रहा था गुरुदेव ?
भगवन् ! क्या गुरुदेव की आज्ञा थी इसमें,
या फिर कोई सामाजिक बन्धन,
या जोर-जबरदस्ती
क्योंकि सुनते हैं,
नसिया जी, हैं जो सोने की,
वह इन्हीं के परिवार के लोगों ने निर्मित कराई है,
यही कारण ‘कि ये सोनी जी बजते हैं ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब.
देखिये,
इनका नाम बड़ा अद्भुत था
जो कहता था
विरोध हमारा अपना ‘भाग’
‘चन्द’ मात्र भी नहीं ‘सोनी जी’
का, इसमें हाथ
यही कारण रहा ‘कि मैनें
श्वानन के जैसे लाठी पर न भूस करके,
पञ्चानन के जैसे दुनाली वाले पर रखी नज़र
चूँकि गुरुदेव का प्रवचन
सुना था मैनें, न सिर्फ ऊपर-ऊपर
कानों के रस्ते,
जा सीधे गया था कुछ धस के जिगर उतर
बस यही वजह
और सन्तों का विश्वप्रसिद्ध नेह-निस्पृह
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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