सवाल
आचार्य भगवन् !
शब्द ‘खुद’ खुद-ब-खुद बतलाता है,
‘के डण्डा लगा नहीं,
मैं खुदा की झलक दिखलाता हूँ
लेकिन डण्डा लगाना टेड़ी खीर क्यों लगता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
ख़ुदा से दूरी है
तब तक
जब तक
खुद से दूरी है
वैसे कोई प्यारा है ही नहीं फासला
कोई विरला पै
है पास जिसके ये कला
है जैसे पास ही
पै कहें कैसे पास ही, मृग कस्तूरी है
ख़ुदा से दूरी है
तब तक
जब तक
खुद से दूरी है
कोल्हू का बैल देख लो
कानों को रखे
आँखों पे सखे !
खरगोश की गहल देख लो
आंखन बाँधी पाटी
ओ मेरे प्यारे साथी
आंखन बाँधी पाटी, खोलना जरूरी है
ख़ुदा से दूरी है
तब तक
जब तक
खुद से दूरी है
क्षितिज छूती बेल देख लो
कोमल लाकड़ी
कठोर कमल-पाँखुड़ी
भवरें की गहल देख लो
आंखन बाँधी पाटी
ओ मेरे प्यारे साथी
आंखन बाँधी पाटी, खोलना जरूरी है
ख़ुदा से दूरी है
तब तक
जब तक
खुद से दूरी है
होते मकड़-जाल खेल देख लो
छली न मटकी
मुट्ठी अटकी
वानर की गहल देख लो
आंखन बाँधी पाटी
ओ मेरे प्यारे साथी
आंखन बाँधी पाटी, खोलना जरूरी है
ख़ुदा से दूरी है
तब तक
जब तक
खुद से दूरी है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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