सवाल
आचार्य भगवन् !
देेख सफेद चादरा,
लोग बाग कीचड़ उछालने से बाज नहीं आते हैं
क्या करें हम,
उस वक्त कैसे बने सहज निराकुलता
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
उर द्वार पर
अपने सफेद किरदार पर
जो उड़ाला गया काला कलर
उसे जर्रा सा सलीके के साथ
कुुछ आगे पीछे करना होता है,
‘के बस होने लगता है
एक अपूर्व दृश्य का उभरना
जब हम बच्चे थे,
तब स्याही वाले पेन रखते थे,
जिनसे चाहे जब, स्याही की बूँद पेज पर
लिखते लिखते ही आ गिरती थी
तब हम कागज को जर्रा सा
मोड़ करके स्याही को पंख नुमा आकार दे करके बाद दो-तीन रेखाएं खींच करके छोटी सी
सुन्दर सी तितली बना लेते थे,
या फिर फूल बना लेते थे
और हाँ…
एक बात और
स्कूल टाईम में जब कभी सफेद ड्रेस पर
साईकल के चलाते वक्त,
या चलते समय कीचड़ लग चलता था
तब हम तुरंत नहीं छुटाते थे
कुछ देर बाद जैसे ही धूूप लगती थी,
सूखते ही, थोड़ा बहुत तो खुद ही,
झरने लगता था कीचड़,
फिर थोड़ा का घिस लो बस,
कपड़ा पहले जैसा नया नया हो चलता था
सो जानवी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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