सवाल
आचार्य भगवन् !
जाने क्यों मन क…ख…ग नहीं चुनता है,
‘घ’ खाने में लिखा शब्द ‘मण्ड’ चुनता है,
सो ले देके घमण्ड हाथ लगता है
क्या करूँ ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
घमण्ड में खुद को कीमती,
औरों को कमती मानते हम
यानि ‘कि विश्व समूचा बौना हमारे आगे,
और स्वयं के लिए सबसे ऊँचा मानते हम
सो सुनो,
अब दृष्टि सम्यक् कहाँ रही,
और बजे हुये समदृष्टि है हम,
सो देखो,
यदि गुमान करके समदृष्टि पने में बट्टा लगाना है,
तो, फिर दूसरी ही बात है
इसलिये
मन के किसी कोने से झाँके गुमान,
तो देख आना आईने में जाके अपने कान
मित्र !
खींच करके रख छोड़ा है,
भगवान् ने रेखा चित्र
हम सूरत जिस रहे, माँ कूप मकान
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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