सवाल
आचार्य भगवन् !
कोई भी कुछ भी कह कर चलता बनता है,
फिर उसकी आवाजें गूंजतीं रहतीं हैं भीतर,
भगवान् !
सामने वाला अपना है
पराया होता तो,
चार सुना भी देते
क्या करें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
हर चीज में अच्छाईयाँ भी होती हैं
बुराईयाँ भी,
जो बुराईंयाँ देख पीछे कदम हटाते हैं हम
तो अच्छाईंयाँ भी कदम पीछे ले लेतीं हैं
इसलिये पड़ते का सौदा जान करके टालना चाहिये
और ऐसे वैसे नहीं, हँस करके
खो आपा,
अपना परायों से बढ़
करता बड़-बड़ जितना
उतना अपना
पराये तो आपा खो,
जुबान के साथ साथ अजि
चलाते बखूब हाथ भी
सचमुच,
सीधे जा कलेजा देते हैं चीर
वचनों के तीर
फिर भी मजाक करने की आदत से,
परेशान ज्यादातर लोग
एक कान से सुन,
चुन लिया करो, दूसरे कान का भी उपयोग
बुलऊआ गारियों का भी होता,
हमेशा याद रखना
अपनों के ऊपर जो विशेष छाप छोड़ चलता है
सो जानवी,
और सुनो,
पहले कोस जाये
आकर बाहर की आवाज कोस जाये
चलता है
पर खलता है
आकर भीतर की आवाज कोस जाये
भले न कोस जाये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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