सवाल
आचार्य भगवन् !
आप कहते भीतर बैठना सीखो
और मन बाहर भागना चाहता है
कैसे सामंजस्य बिठालूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सबसे पहले तो यह कह दीजिएगा मन से
‘कि ओ ! करतार जी
कुछ भी काम नहीं कराना मुझे, आपसे अपना
सारे काम मेरे हो चुके हैं
आप तो पैैर लटका के बैठिए बस,
हिलाईये मत
भीतर की तान सुनिये बस,
नाड़ हिलाईये मत
नाक बन्द रखिये बस,
मुँह से श्वास लीजिए मत
छींक लीजिए बस,
आंख मींचिये मत
कोहनी में लगा करके गुड़
ज्यादा नहीं छटाक
ज्यादा नहीं बार एक दिखलाईये चाट
सचमुच,
बड़ा भाव खाती हैं
चीजें
हाथ आते-आते हाथ से फिसल जाती हैं
जब बाहर की ऐसी दशा
तब भीतर की तो बात ही निराली है
मिलता बाहर
सो…ना
मिलता भीतर
हटाने के बाद, मिट्टी का ढ़ेर पर लगा ढ़ेर
वो भी थोड़ा बहुत
न ‘कि आध-पाँव के सेर
और नखरे तो देखिए
चाहता हैं, अभी भी मुँह दिखाई
दो, छह नहीं पूरे के पूरे सोलह ताँव भाई
हाईकू
खुदाई
झिर पानी मीठे दिलाई
जुदा खुदा…ई
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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