सवाल
आचार्य भगवन् !
घर से कब निकल चलना चाहिए,
और क्या सोचना चाहिए
घर से निकल चलने के लिए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
जब भगवान् ही पहले पहल,
घर से नौ महिने में निकालता है
तो आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त तो ज्यादा हो चला
एक समय भी रनिंग नव है
उनका अनुकरण कर के
समवशरण में,
असमय वृद्धों में इन्ट्री करा लो
ट्री यानि ‘कि अशोक-वृक्ष
इन यानि ‘कि नीचे शरण पाने कलियुग में, सबसे अच्छा घर से निकलने का समय है
अपने हिस्से का दाना,
चुग कर उड़ गई चिड़िया
हमसे कई गुनी बढ़िया
हम तो कुण्डली मार कर बैठे हैं
लाये थे क्या साथ में, ले जायेंगे क्या
जिसको अपना मान कर बैठे हैं
जिन्हें जान…वर कहते है
आते जाते वक्त,
जब हाथ उनके रिक्त रहते हैं
फिर लगने वाला क्या हाथ हमारे
सींग न सही,
हा ! पूँछ भी हो नहीं साथ हमारे
फिर जाने क्यूँ ? कहाँ भागे जा रहे है थके हारे
चबाते रहिये,
च्विंगम माफिक
पर भरने वाला न पेट
विषय-भोग हा ! मा ! धिक् !
देखकर तन्दूर सुलगता,
अपनी रोटी कौन नहीं सकता
जो अपनी रोटी सिक चली हो तो,
चलो खिसक चलो
बहुत बदतर…
मौत मच्छर
मानो तुम,
रस चुक जाने के बाद
लेकर गन्ना अपने हाथ
कौन चूसता ?
कौन पूछता, मानौ तुम
हाईकू
मुँदेने बस नैना,
फिर अपना कुछ भी है ना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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