सवाल
आचार्य भगवन् !
बड़ी मनमानी करता है, मेरा मन,
कैसे समझाऊँ इसे, कुछ तो बताइए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पहले पहल मारता मन पागलपन
जरा सा झकझोर कर दे…बता
आ चला नाक तक पानी
पूछते पूछते पता
यानि ‘कि हुआ केस सीरियस
बस अब करेगा मन नामे श्री…यस
आपने देखा हो
परस्पर
एक दूसरे के ऊपर जान छिड़कने वाले
सगे भाई बहन प्राय: छोटी छोटी बातों पर
झगड़ते मिलते हैं
यही नोक झोंक उन्हें करीबी बनाती है
‘कि सुदूर बहन की विदाई,
दूर बहन की सगाई
चल रही सिर्फ अभी देखा परखी
पर रहने लगी दोंनो की आंख भरी-भरी
बिगड़ चला है,
मन जियादा लाड़ प्यार से
सर-चढ़ चला है
आ उमेंठते इसके कान जरा
मिजाज इसका कुछ मसखरा
जो हद से आगे बढ़ चला है,
‘के होगा बस खरा
तो ये हमारी उदारता है,
‘कि हमने मन को अपने,
अपना करीबी माना है
है तो सहायक
सलाहकार भी नहीं,
सो जानवी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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