सवाल
आचार्य भगवन् !
देखा तो नहीं, पर सुना जरूर है,
जब आप रात्रि विश्राम करते हैं,
तो चेहरे पर यही चितचौर मुस्कान छाई रहती है जहाँ लोग विकृत ही आकृति के,
सोते समय दिखते हैं
कहीं लार मुँह से टपकती है,
तो कहीं बाल बिखर-उलझ जाते हैं,
वहाँ आपकी सहज निद्रा क्या कारण है,
हम जानना चाहते हैं ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
‘सपना
अपना’
दिन भर में
जिससे मिलना न हुआ
‘के उससे हो मिलना ये दुआ
जो पढ़ कर लेटता है
फिर वह ‘लेट’ न होता है
होता है जरूर रुबरू
और करीबी,
दूूर-गुरुर गुरु हों
खत्म, ओम् से ही शुरू, माँ हों,
देव पुरु हों
तब कहना ही क्या ?
अधर ही नहीं,
अन्तर् भी
मुस्कुराता है
जैसे-जैसे करीबी अपना
और और करीब आता है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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