सवाल
आचार्य भगवन् !
ज्योत से,
रोशनी न ‘कि नोट से
त्योहारों को हार सी क्यों हो चली है
हर्षोल्लास के साथ कोई मनाता ही नहीं,
सभी को पैसों की खन-खन सुनाई देती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
माउण्ट वास
कल
तीज त्यौहार पर
आज माईण्ड बास
वो भी शराब, कबाब, शबाब से,
हो जो भी बहुत आगे बढ़ गये हम
अपने बाप-दाद से
और सुनिए,
रख कांधे जुआ एण्ट सा बढ़के रास्ता बनाना
दिन दीवाली न ‘कि धिक् कादे ‘जूआ’
एलीफेन्ट सा धसते जाना
सच,
घनेरा
दिया तले रह जाता अंधेरा
बलजोर भी पीठ फिरे बिना
अपने पैरों के निशां
हम देख सकते नहीं
खरखरे नोटों में लगाई जाती आग
न ‘कि पटाखों में
दिखती हमें हो अगर भीतरी आंख
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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