सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
‘जननी जन्म भूमिश्च,
स्वर्गादपि गरीयसी’
और भगवान् कर्नाटक की सरजमीं
आपका पलकें बिछाए,
आंखें भिंजाए
बड़ी बेशबरी से इंतजार कर रही है
लेकिन आप हैं ‘कि आंख उठा के भी उस
तरफ देखते ही नहीं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कर…नाटक तो आया हूँ
और माँ से कदम पीछे न लौटने का वादा है
खूूब रह लिया बनके
हाँ… हाँ… कूप मंडूूक
अब माँ से कदम फूंक-फूंक रखने का वादा है
और मेरे भगवान् ने पीछे सागर जो लगा दिया
अगम पवमान दीपक को थमा दिया
अब थारी-मारी का मन नहीं करता
ऊब चुका हूँ तू-तू मैं-मैं से
सुना है
‘के प्रत्येक ध्वनि की प्रतिध्वनि होती है
भले हम
सुन पायें, या न सुन पायें
ब्रह्माण्ड यदि कूप है, तो वो जरूर सुनता होगा
यानि ‘कि
जो छी बोले, तो प्रतिध्वनि छीछी लौटे
सो क्यों न हम वाह कहें
और वाह वाह लूटें
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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