सवाल
आचार्य भगवन् !
बिजली से जन्म दिला
पतंगे को घड़ी अगली
छिपकली के मुख का निवाला बना दिया
वक्त उसी
सर्प की लपलपाती जिह्वाओं के,
वशीभूत कर दिया छिपकली को
और प्रकृति ओ !
अभी तुम न बाज आईं
कहीं से बुला बाज लाई
‘मैं सिरफ’
‘के न कह सके सरफ
प्रकृति तुम चाहती क्या हो
विसृजन
या फिर विसर्जन.
भगवन् !
ये कविता किस तरफ इशारा करती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
यही तो संसार की असारता है
अलसुबह
गुल वह
फूल,
फूल जाता है
सीना कर लेता है, छप्पन का
भूल जाता है
शब्द जनम में
न तो निषेधात्मक
यानि ‘कि विधेयात्मक शब्द जम है
और हाँ…
आप तो जात-बैरिंयों को बात कर रहे हैं
मैं बात छेड़ रहा हूँ भ्रात बैरिंयों की
शफरी मछली का पर्यायवाची नाम
सिर्फ कह रही है,
दिल की साफ…री
दूसरा पर्यायवाची नाम जुड़ के कहता
‘मी’ यानि ‘कि मैं
‘न’ यानि ‘कि नहीं
मतलब मैं दिल की साफ नहीं हूँ
और तो और पीछे कहाँ मात बैरी यहाँ
वो भी ना…गिन
क्या शूकरी
क्या कूकरी
हा ! भूख…’री
जमा…ना
बाज कहाँ आता पर मारने से ‘पर’
हा ! भूल जाता है,
पिंजरे में मारने से पर जाते झर
समझो भी’ धी’वर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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