सवाल
आचार्य भगवन् !
दादी, नानी की किस्सों का मन्थन
करने पर नवनीत बाहर निकलता है
चीजें एक छोर से छुओ
दूसरे नेक छोर से अनछुई रह जाती हैं
इसलिये ‘के फैसले सही हों,
न सहीं किसी दूसरे को,
स्वयं के लिए ही, जाकर आईने के सामने
जोर से बोल के बतला देना चाहिये,
ये कितना सही है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
दूर…
…सुदर
मनमाना फैसला
मन-ठाना फैसला भी
न मिले साथी-साधो तो
माटी-माधौ ही सही
पर दे…बता
बात होते ही कान चार
पीछे पछतावा न खटखटाता द्वार
मा…न
न…मा बेंत
इतिवृत्त नया गढ़ गया
अंकड़
पेड़-बड़
पा हवा तूफानी
उखड़ गया
सौ लोगों से मत करना
भले… नौ लोगों से मत करना
पर दो लोगों से
सलाह-मशविरा जरूर करना
यदि दूर करना सही फैसले से फासले तो
क्योंकि अकेले अकेले फैसले लेते वक्त
फिसलने के चांस ज्यादा रहते हैं
मन की धारा में तो
फिर भी ठीक था
‘पर भगवान् बचाये’
चूँकि
अब हम मनमानी धारा में बहते हैं
जाने क्यूँ शैतान सताये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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