सवाल
आचार्य भगवन् !
जिनागम में आचार्य महाराज कोई भी हों
ग्रन्थ समाप्ति पर एक ही भावना भाते हैं,
बोधि-समाधि
और प्रथमानुयोग को तो
इसका निधान-खजाना ही कह दिया गया है,
इनके बारे में बतलाईये ना गुरु जी ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पारिभाषिक कोश मत छानिये
हमें पिछानिये
ऐसे वैसे नहीं हम
तोड़-मरोड़ लीजिये
अलटा-पलटा लीजिये
समस्या सुलझाना खूब बखूब जानते हम
देखिए शब्द
सब…द
बोधी, वो का विपरीत ए
सो एधी से किसका परिचय नहीं
खूब अनुभव में भी आ रही है,
ए यानि ‘कि इह संसार की बुद्धि
कल में जी रहे हम,
कलमें भी जी जायें
पर पानी तो राखें
मनी-प्लान करने,
शुभ-शगुन के रूप मनी-प्लाण्ट यदि लगाते हैं
तो पानी ही पानी चाहियें
पर हा ! हाय !
बिना पानी के तो
म…नी प्लाण्ट हरियाया
चूँकि हरि भुलाया
तो जो अब तक न सुनी
न चुनी, न गुनी वो रत्नत्रय की त्रिवेणी,
गंगा, जमुना, सरस्वती का संगम रूप मोक्ष-मार्ग बोधि है
और समाधी
सम+आधि आधि यानि ‘कि अन्दरूनी रोग
बड़े ख़तरनाक अन्दर ही अन्दर करते जाते खोखला गनीमत है नाक तक ही आया पानी
‘के लग चले पता
पंजे उठा बच निकल सकते हैं
लेकिन सर के ऊपर भी आ चलता पानी
सुध ना लेते प्राणी
सो जन्म, जरा, मृत्यु के शमन प्रशमन करने का रास्ता है समाधि
सम…धी और आसान ही
दो टके तुम्हारे पास, दो टके हमारे पास
कर लो मिलन, सम्मेलन
पर सम्मेलन निकल जाता समा बचता है
आसान नहीं समा…धी
धी शारदा समान बुद्धि यानि ‘कि
श्रुत के…बल ज्ञानी
या फिर श्रुत विश्रुत केवल आत्म ज्ञानी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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