सवाल
आचार्य भगवन् !
चार अंगुल का फासला तय कर के
फिर कह रहा हूँ,
नाक को बोझिल न करूँगा,
ऐसी शपथ उठा कर कह रहा हूँ,
देखा है मैनें,
सुना भी कम नहीं था पहले,
‘के आप अपना एक कदम भी,
जो आगे बढ़ाते हैं,
तो मन ही मन महामंत्र णमोकार पढ़ आते हैं
पलकें, ‘पल के’ लिये खोलने की,
हिदायत पर अमल करते हुये
फिर बाद में हाथ में ले करके
पीछी-कमण्डल,
थोड़े से जोर से,
थोड़ा सा चेहरे पर जोर दे
अपराजित मंत्र णमोकार का
उच्चारण करते हैं,
और कब नहीं मिलते हैं,
चाहे सिंहासन पर बिठा दो, पूजन के समय
या फिर देवदर्शन के लिये,
चार हाथ भूमि निरख-निरख के
नववधु के माफिक चलते समय,
यानि ‘कि जब देखो तब
सो मेरे भगवन् !
आप सच्ची-सच्ची बतलाना
कुछ भी मुझसे मत छुपाना
क्या आप किसी से डरते हैं ?
मम्मी ने बचपन में मुझसे,
कह करके रक्खा था
‘के जब डर लगे,
तो संकटमोचन णमोकार महा-मंत्र
जोर जोर से पड़ने लगा करो
और कहीं भूल न जाऊँ मैं, इसलिये
एक आगमिक प्रसंग भी सुनाया था,
जिसमें निकट-भव्य एकपाठी अकलंक भैय्या,
और द्विपाठी निकलंक भैय्या,
बौद्ध-मठ में, संकट के समय,
“बुद्धम् शरणम् गच्छामि”
न कहते हुये,
बल्कि मिले थे बौद्ध भिक्षुओं को,
कहते हैं,
“णमो अरिहंताणम्” कुछ जोर दे,
न ‘कि बस जोर से ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब.
हाँ…
मैं डरता तो हूँ
आठ के आठ सभी दुश्मन
हाथ धोके जो पीछे पड़े हैं
एक कदम अभी बढ़ाया नहीं
‘के केकड़ों के मानिन्द,
नीचे खींचने खडे़ हैं
आठ के आठ सभी दुश्मन
हाथ धोके जो पीछे पड़े हैं
ऐसे वैसे भी नहीं,
हैं ये बड़े शातिर-दिमाग
कहीं से भी लाग लगने ही नहीं देते हैं
कहीं से भी दाल गलने ही नहीं देते हैं
जब-तब…
इनके बारे में सोच करके
पल भर के लिये
सिहरता तो हूँ
हाँ… मैं डरता तो हूँ
आठ के आठ सभी दुश्मन
हाथ धोके जो पीछे पड़े हैं
तलक आज परीक्षा में सफल न हो सका हूँ
और इस दफा, बन जाँबाज,
आग का दरिया,
हीन संहनन रूप मोम का पुतला मैं
पार करने जो निकला हूँ
जब-तब…
न सिर्फ कमजोर,
कामचोर, इस मन के बारे में सोच करके
पल भर के लिये
मैं ठिठकता तो हूँ
हाँ… मैं डरता तो हूँ
आठ के आठ सभी दुश्मन
हाथ धोके जो पीछे पड़े हैं
और सुनते हैं,
पल-पल मरण होता हमारा,
नाम है आवीची-मरण
आवीची यानि ‘कि लहरें,
उठते-उठते ही,
उसी समन्दर में समा जाती हैं जो,
वैसे ही हमारी आयु के निषेक,
पल-पल झरते हैं
यानि ‘कि हम,
पल-पल थोड़ा-थोड़ा करके मरते हैं
फिर एक दिन,
दुनिया के कानों तक खबर आती है,
‘कि फलाने-फलाने चल वसे,
ताकि जमाना न कल हँसे
इसीलिये पल पल के मरण में
सुमरण करता रहता हूँ,
सु-मरण करता रहता हूँ,
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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