सवाल
आचार्य भगवन् !
जब आप गिल्ली उठाने के लिए गुफा में गये थे,
तब वहाँ एक मुनिराज को देखकर,
उन्हीं उनके चरणो में दृष्टि देकर बैठ गये थे,
तब उन्होंने आपको,
भक्तामर जी के कुछ श्लोक सिखा,
कल याद करके आना, ऐसा कहने पर,
आपने कहा था भगवन् !
आज क्या,
अभी सुन लीजिये
तो स्वामिन् मेरी जिज्ञासा यह है,
‘कि देखते खूूब,
आप जब तब भक्तिंयाँ, प्रतिक्रमण, पाठादि पुस्तक से देखकर ही पढ़ते मिलते हैं,
और अपनी अंगुली भी बच्चों के जैसे,
अक्षरों पर रखकर पढ़ते हैं
छोटे बाबा ! जर्रा ये तो बताइये,
क्या राज है इसमें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
इनके शाब्दिक अर्थों पर,
जब से दृष्टि दौड़ाई है,
तब से लाईन पर अँगुली,
और अक्षर पर दृष्टि टिकाई है
सो, मन भागे
तो आँखिंयाँ पहुँचा देतीं होके आगे
‘थे कहाँ, पढ़ रहे’ उस तक
जुुग नयन भागे
तो अंगुलिंयाँ पहुँचा देतीं होके आगे
‘थे जहाँ, पढ़ रहे’ उस तक
यानि ‘कि
लक्ष्य तक ‘पुस’ करती पुस्तक
इसे बुक भी कहते हैं,
बुकिंग का तो जमाना ही है,
“पहले आओ… पहले पाओ”
इसी का नाम दूसरा किताब
कितने आब यानि ‘कि पानी में हैं आप जनाब
‘दे बता’
लगा हिसाब-‘किताब’
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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