सवाल
आचार्य भगवन् !
गुरुणां-गुरु ज्ञान सागर जी ने,
संघ को गुरुकुल बनाने की बात रखी थी,
लेकिन आपने तो आज,
संघ को कुल-गुरु बना दिया है
क्या सिर्फ शब्द ही फेरने पड़े,
या फिर, आप जिस दूसरी शाला की,
दूसरी कक्षा में पढ़े हैं,
वह कोर्स पढ़ाना पढ़ा है,
सारे संघ के लिए, आपको ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
संघ हमारा नहीं है,
हम संघ के हैं
कुल-गुरु तो
गुरु कुन्द-कुन्द संघ था ही
यथा नाम तथा गुण
कुन्द-कुन्द
यानि ‘कि धवल-धवल
‘धव’ यानि ‘कि स्वामी पना
‘ल’ यानी लाने वाला
धन्य गुरु ज्ञान सागर जी की करुणा,
जिनने मुझ जैसे कुन्द बुद्धि वाले,
शिशु को दी,
कुन्द-कुन्द की,
विशुद्धि वाले गुरुकुल में, शरणा
बागवान वहीं हैं
सब काम उनका
बस हो रहा नाम
बिरवान का
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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