सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके प्रवचनों में,
सुना है ‘कि
भगवान् पारस नाथ जी ने,
इस वर्तमान भव में क्या,
दश भवों से लेकर कभी भी,
कमठ के जीव को दुश्मन नहीं समझा
न ही दुश्मनी रखी,
तो मेरे भगवन् !
क्या इतनी खतरनाक है ये दुश्मनी
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिए,
खतरनाक तो बाद में
पहले ही यह नाक कतर देती है
अब शुआ के जैसे,
इसे पाल के फिरते रहो
गिरते रहो
एक दूसरे की टांग खींचते खींचते
अच्छा था
कुछ सिखाते,
हा ! केकड़े से सीखते
दीवाल से तो खूब सटाते हो
क्यूँ नहीं, कान अपने ले जा जर्रा
शब्दों से टिकाते हो
बहुत कुछ कहते शब्द
दो…मन दुश्मन
काफी मन भी
समझो कम नहीं
पाँव भी हाथी
एक किलो में पाव चार
एक मन यानि ‘कि चालीस किलो
कुछ समझो भी बरखुरदार
एक नहीं,
दो गुनी… ‘मनी’
हो कोई भी,
ज्यादा देर ठहर न सकेगा,
भजाने से दुश्मनी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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