सवाल
आचार्य भगवन् !
खूब आता है प्रमाद
पता नहीं पड़ पाता है
कितने रास्ते पता कर रक्खे हैं इसने,
और ‘के तो नहीं कहूॅंगा,
मेरे अपने मन मे इसने घर करके रक्खा है
चाहे जब मुँह की खिलाता रहता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
कुछ कहता सा शब्द प्रमाद
पर…माँद
जिसे न चाहे कभी भी शेर
न यूँ ही, खो.. दो
‘पा’ मानौ जोन
बनती कोशिश खोदो
सोना मिलता है
मानौ जोन के आलावा
और योनिंयों में, सिर्फ सोने मिलता है
भले एक बार
पर जाकरके करीब कर्ण द्वार
ये वर्ण चार
‘कुछ बच्चा’
जिसे कुछ लिखना न सूझ रहा है
बेकरार वही बार-बार बूझ रहा है
‘के पेन स्याही से तरबतर है,
या सूख रहा है
‘लिखाई ‘
नसीब लिखाई
धारा प्रवाही
उससे स्याही खुदबखुर कहे
‘के अब हम नहीं रहे
सो
आत्म से,
परमात्म से जोड़िये नाता
परमाद अपना ना है, ना होगा, ना था
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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