सवाल
आचार्य भगवन् !
लोग-बाग बाग भर के श्रीफल चढ़ाते हैं
होते हैं कुछ लोगो के दिल बाग-बाग,
और होती है बहुत कुछ लोगों के हाथ
बस दौड़-भाग
भगवन् ! ये श्रद्धान कैसा,
कितना किया जाये
जोर लगाकर फैलाते हैं,
पर यह स्प्रिंग के माफिक
अपनी जगह पुन: आ जाता है ।
मन कहता है, बार बार,
कुछ नहीं होते भगवान् बगवान्
फिर मन कहता है
बगवान् मे डंडा लगा करके देखो
शायद बगवान्
बागबान बन जाये,
वैसे पेंडुलम अच्छा है,
ऐसे मेरे मन से तो ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखो,
किसी को सुबहो सुबहो,
रुक कर ही मिल जाती है
दोपहर झुककर भी मिल जाती है
बाद फिर चीज वही सॉंझ-साँझ
‘टिक-कर’ भी न मिल पाती है
किसी को शुभ हो, शुभ हो
जगह नुक्कड़ की मिल जाती है
धाक जम जाती है
किसी की धाक जमाने में,
धक-धक ही गुम जाती है
भाग कह लो
इसे ही मिली चीज,
दौड़-भाग कह लो
बडा प्यारा शब्द है,
श्रद्धान
गाँव के राव कहते
सरधान
ऐसे ही सर पर धान नहीं आती है
सुनते है,
खूब पानी राखना पड़ता है,
डूब पानी पैरों पै…रों रो…पे
रोपे जाते हैैं
न ‘कि सिर्फ रो कर, पैर पड़े जाते हैं,
कुछ लोग इसे,
सरदान भी कहते हैं,
सिर्फ दान नहीं,
है सिर का दान भी कम
‘के आनी चाहिए शरम
दो कर पैर दिये जाते हैैं
उसके द्वारा हमें,
‘कि कुछ राम,
बहुत कुछ हम निपटायें काम
ग्रास तोड़ने का काम हमारा
‘ग्रास’ मुँह तलक छोड़ने का काम हमारा
सुनो, चबाने का काम हमारा
ले जाकर हलक तलक,
ढ़केल आने का काम हमारा
और बाकी का काम भगवान् का
उससे पहले का काम करा भगवान् से
हाथ धोना तो धो लो
आगरभ-मरण श्रद्धान से
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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