सवाल
आचार्य भगवन् !
सुना है,
आपने किन्हीं व्रती को,
गलती करते देख लिया
और उन्होंने उस गलती पर,
विशेष गौर न करके,
नज़र अंदाज़ कर दिया
यदि आप तक प्रायश्चित लेने नहीं आये वो,
तो आप कुछ समय के लिये,
उनसे बोलना, उनकी तरफ देखना,
उनके लिए आशीर्वाद देना,
आदि-आदि बन्द कर देते है,
और जैसे ही वो स्वयं
अपने मुख से अपनी गलती स्वीकार लेते हैं
तो पलक भी ना झॅंप पाती,
आप तुरंत ही उन्हें
मुआफ कर देते हैं,
ऐसा क्यों स्वामिन् !
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
बड़ी से बड़ी गलती, अपने बड़ों को
जो हम, स्वयं जाकर बताते हैं,
तो होती है, वह गलती छोटी सी
बड़े, बड़े जल्दी कर देते हैं मुआफ
और
छोटी से छोटी गलती,
हमारे, अपने बड़ों को
जो दूसरे आकर बताते हैं,
तो बड़ी ही नहीं,
होती वह गलती बड़ी मोटी भी
बड़े, बड़े जल्दी कर लेते है मुँ…ऑफ
के अब क्या बो लें
हमारी परबरिश बारिश में ही रही कमी
हा ! हाय !
रही नींव में ही कहीं नमी
गलती ‘बताते ही’
गल जाती है
हा ! छुपाते छुपाते
छुपाने की गन्दी लत पड़ जाती है
और गलती कब छुपी ‘ओ जी
चेहरे, आँखों में छपी होती
सुना होगा,
चोर की दाड़ी में तिनका
यानि ‘कि प्रतिबिंब आंख में मन का
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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