सवाल
आचार्य भगवन् !
धन्य हैं हम सभी लोग,
जो आपके समोशरण में,
शरण पा रहे हैं
और लगता भी है
समोशरण सा आपका संघ
इतना बड़ा जो है,
50-50 मुनियों का,
सचमुच पंचम काल में
साक्षात् वर्धमान स्वामी ही,
विहार कर रहे हो, ऐसा लगता है
आपने कभी
बन्दर-बाँट नहीं अपनाई
मुट्टी दिल में अपने,
आपने सारी दुनिया समा के दिखलाई है,
और क्या ऐसा ही तो वर्णन आता है
सम…शरण
सचमुच सार्थ नाम चरितार्थ कर,
दिखलाया आपने स्वामिन् !
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
रुकिए… रुकिए
अनोखा
समशरण
सम…शरण अनोखी
अभी,
मैं तो स्वयम् चाह रहा शरण,
भगवत्-चरण
शरण कैसे दे दूँ तुमको
चारों खाने चित भी तो नहीं कर पाया अभी
यम को
आसमान से टपका हूॅं
खजूर पे लटका है
हा ! हाय !
हाथ लग पाई कहाँ,
वसु…धा
सुधा तो झरी है
यहाँ तक ‘कि लगी झड़ी है
वो भी कम न भदन्त
सागरों पर्यन्त
किन्तु, परंतु, पर झरी है कण्ठ में,
कर्णांजुली में झर चले
तो झर चले
अष्टक करम
पर हाय !
आज तक सिर्फ सपना ही,
बने मर हम, मरहम
राही बन चला हूॅं इस बार
‘के आखर पलट सकूॅं
सुराही बन सकूॅं
भाग सुलट सकूँ
यही अरज
ले माथे श्री गुरु ज्ञान चरण रज
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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