सवाल
आचार्य भगवन् !
ये जैन दर्शन कैसा है,
चिर दीक्षित मुनिराज,
और नव दीक्षित मुनिराज एक
ही पाटे पर बैठने के लिये,
कहते है आप,
और सारा जगत् जागृत रह करके,
देखा मैंने आप लोगों के यहाँ जैसी व्यवस्था,
और कहीं भी देखने में नहीं आई,
और भगवन् !
ठीक से भी लगते हैं दूसरे दर्शन वाले,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखो, गहरा
राज छुपा है,
मैंने भी गुरुदेव से यह प्रश्न किया था,
उन्होंने उत्तर कविता में दिया था,
सुनिए,
किसी को नीचे क्यों रखते हो
एक के नीचे जो
एक रख, जोड़ते
तो आता दो,
और
एक के बाजू में,
एक रखते
तो बग़ैर जोड़े ही
बेजोड़ आता ग्यारह
सो
हर किसी को बराबरी पे,
अपने समकक्ष ही क्यों नहीं रखते हो,
किसी को नीचे क्यों रखते हो,
इस धर्म को माहन भी कहा गया है,
कुछ-कुछ इन्हीं शब्दों से मिलकर बना है
शब्द महान
रे सुजान !
ऐसा वैसा थोड़े ही जैन धरम
नैनन नम
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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