सवाल
आचार्य भगवन् !
पाताल की लोहे के पिण्ड को भी,
पल भर में गला देने वाली गर्मी,
गर्मी के मौसम में,
आँखें ऊपर चढ़ा कर,
गर्दन कुछ दोनों कंधों से सटाकर,
झाँकने लगती है,
चूँकि धरती दरारें जो खा जाती है,
पेड़ों का पानी सूख चलता है
धारा नदियों की टूट चलती है
ऐसी तपती दोपहरी में,
सहाय बन सके इसलिये भगवन् ! बरफ न सही मलाई का बरफ तो, न सही ज्यादा
न सही अंजली-पुट भर कर,
भले खाली छोड़कर कर आधा,
ले हो लिया करो,
थोड़ा सा वैयावृत्ति का अवसर हमें भी,
दे तो दिया करो,
भगवन् आग्रह नहीं, अरज कर रहा हूँ,
हो सुनवाई स्वामिन्
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिए,
शब्द ही कहता
स यानि ‘कि वह,
जो हमारी हाय-हाय सुन करके,
वाह-वाह लूट ले जाए
और ठहरे हम फकीर
जो बचा-खुचा भी लुट जाए
तो क्या मुँह दिखायेंगे
माँ के लिये,
आने वाला ही करीब वक्त अखीर
तभी
करते तपस्वी
इसे दूर से ही बाय-बाय
और बरफ हो
या
म…लाई बरफ हो
सभी ब…रफ हैं
‘रफ’ चीजें लेने के लिये
मनाही है ना
और म…ला…ई है ना
नम…कार
जिसके आगे मौसम गरम बेअसरदार
आ…सरदार होने का
दें परिचय
करके इन्द्रिय विजय
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!