सवाल
आचार्य भगवन् !
क्या कारण रहा के आपने प्रतिभा स्थलियाँ
ब्रह्मचारी भाईयों के लिए सुपुर्द न करके,
दीदिंयों के लिए उसका कार्यभार संभालने के लिए निर्देशन दिया ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पुरुष कुछ-कुछ परुष हृदय होते हैं,
और बच्चे ममता के भूखे होते हैं
भले पौरुष से तीते रहते हैं,
परन्तु जो वत्स-प्रीत-गो उससे रीते रहते हैं
पुरुष बहुत कुछ स्वार्थ सँजाते हैं
पुरुष कुछ कुछ परुष हृदय होते हैं,
और बच्चे ममता के भूखे होते हैं
और ऐसी धारणा सिर्फ मेरी हो,
सो भी नहीं, युग के आदि में,
युग पुरुष आदि ने
अपनी दो कन्याओं में से
ब्राह्मी के लिए लिपि विद्या, और सुन्दरी के लिए
अंग विद्या का ज्ञान कराया
सुत चक्री भरत न भाया,
पुुत्र कामदेव बाहुबली को भी पीछे हटाया
‘के यहाँ असि की नहीं,
मसि की वार्ता है
जिसके योग्य कोई आर्य नहीं,
माँ…सी कोई आर्या है
सो मैंने परिपाटी ही आगे बढ़ाई
भाईयों को श्रमदान,
बहनों को प्रतिभा-स्थली यमाई
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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